बैठा इस मंज़र पर सोच रहा मैं बीता हुआ कल
इंसान हूँ अन्यथा कर पाता समय को बदल ...
ज़िन्दगी के इस इम्तिहान मैं जीत होगी आज नहीं तो कल
कि कीचड़ के बीच ही खिलता है कमल ...
इंसान हूँ अन्यथा कर पाता समय को बदल ...
ज़िन्दगी के इस इम्तिहान मैं जीत होगी आज नहीं तो कल
कि कीचड़ के बीच ही खिलता है कमल ...
कुछ पल अपने अंतर्मन के लिए जिया मैं
ज़िन्दगी के सही मायने पहचान न पाया मैं ...
लोगों के शंका में छुप गई मेरी प्रतिभा
भूल गया की हर इंसान में ही बसी है उसकी आभा ...
दुविधा मेरे जीवन का हिस्सा बन गए
लक्ष्य जो थे मेरे वह बीता हुआ किस्सा बन गए ...
अनजानी राहों में ढूँढ रहा मैं अपना ठिकाना
मंज़र पे खड़ा इस असमंझस में की कहाँ है मुझे जाना ...
लक्ष्य जो थे मेरे वह बीता हुआ किस्सा बन गए ...
अनजानी राहों में ढूँढ रहा मैं अपना ठिकाना
मंज़र पे खड़ा इस असमंझस में की कहाँ है मुझे जाना ...
जिम्मेदारियों का आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता हुआ बोझ
अपेक्षाओं की उधड बुन में कर रहा अपने ज़मीर की खोज ...
ज़िन्दगी का मार्गदर्शक अब सिर्फ मन नहीं रह गया
क्यूँकि अब सफलता का चिन्ह चंद रुपये बन के रह गया ...
सीख संसार के पाठ इस राह पर मैं फ़िर चल पड़ा
समय मेरे भी अनुकूल होगा इस विश्वास के साथ मेरा हर पग बढ़ा ...
मुश्किल समय में जिनका साथ रहा उनका हूँ मैं सदा शुक्रगुज़ार
सत्य है की विश्वास और सच्चाई ही हमेशा रहेंगे जीवन के आधार ...